|स्वर्ण रूप्यं ताम्रं च रंग यशदमेव च।
शीसं लौहं रसश्चेति धातवोऽष्टौ प्रकीर्तिता:।
सुश्रुतसंहिता में केवल प्रथम सात धातुओं का ही निर्देश देखकर आपातत: प्रतीत होता है कि सुश्रुत पारा (पारद, रस) को धातु मानने के पक्ष में नहीं हैं, पर यह कल्पना ठीक नहीं। उन्होंने रस को धातु भी अन्यत्र माना है (ततो रस इति प्रोक्त: स च धातुरपि स्मृतथ:)। अष्टधातु का उपयोग प्रतिमा के निर्माण के लिए भी किया जाता है।
अष्टधातु-
सोना, चाँदी, तांबा, रांगा, जस्ता, सीसा, लोहा, तथा पारा (रस).
अष्टधातु का मुनष्य के स्वास्थ्य से गहरा सम्बंध है यह हृदय को भी बल देता है एवं मनुष्य की कितनी ही बीमारियों को दूर करता है। अष्ट धातु की अंगूठी
पहिनने पर या कड़ा धारण करने पर यह मानसिक तनाव को दूर कर मन में शान्ति लाता है। यहीं नहीं यह वात पित्त कफ का इस प्रकार सामंजस्य करती हैं कि बीमारियां कम एवं स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव होता है अष्ट धातु मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालता है। इससे व्यक्ति में तीव्र एवं सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है। धीरे-धीरे सम्पन्नता में वृद्धि होती है।
पहिनने पर या कड़ा धारण करने पर यह मानसिक तनाव को दूर कर मन में शान्ति लाता है। यहीं नहीं यह वात पित्त कफ का इस प्रकार सामंजस्य करती हैं कि बीमारियां कम एवं स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव होता है अष्ट धातु मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालता है। इससे व्यक्ति में तीव्र एवं सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है। धीरे-धीरे सम्पन्नता में वृद्धि होती है।
यह लाभ तो सिर्फ अष्टधातु के है और इसी अष्टधातु से बिर कंगण बनाया जाता है।आज मै यहा पर 21 बिर 36 योगिनी के कंगण के बारे मे लिख रहा हु।
यह कंगण सामान्यतः आकार मे छोटा होता है परंतु शीघ्र फलप्रद कहा जाता है।इस कंगण से सिर्फ अच्छे कार्य करवाये जाते है और कार्य पुर्ण होने के बाद बिर को मिठाई का भोग दिया जाता है।यह बिर कंगण पुर्णत: सात्विक है जिसे स्त्री/पुरुष सिद्ध करके अपने और दुसरो के कार्यो को भी पुर्ण करवा सकते है।
जैसे के इससे पहले भी मै बता चुका हू "हम बिरो से कोइ भी काम करवा सकते है" और इसको सिद्ध करना बहोत आसान है।बिर कंगण शाबर मंत्रो के माध्यम से जागृत करके सिद्ध कर सकते है।जब बिर कंगण जागृत होता है तब हमे बिर वशीकरण ,सम्मोहन ,आकर्षण , मोहन ,उच्चाटन ,विद्वेषण ,शान्तिकर्म मे हमारे काम को कर देता है।आपको अगर किसी का भी कोइ काम करना हो तो आप बैठे जगह से दुरस्थ बैठे व्यक्ति का भी काम करवा सकते है।
बिर कोइ साधारण शक्ति नही है,देवताओ के स्मशानी ताकतो को ही बिर कहा जाता है।जैसे हनुमत बिर जो अत्याधिक शक्तिशाली माना जाता है क्युके हनुमानजी के स्मशानी ताकत को ही हनुमत बिर कहेते है। अब आप ही सोचिये येसा कोनसा कार्य है जो हनुमानजी नही कर सकते है। नाथ साम्प्रदाय मे हनुमानजी जी को सिद्ध जती नाम कि उपाधि प्राप्त है और ज्यादा से ज्यादा शाबर मंत्र उनसे ही सम्बन्धित है।इस प्रकार से अन्य 20 बिर भी बिर कंगण मे स्थापित किये गये है।
माहिती बिर-जो हमे किसी भी जगह का खबर हमारे कान मे सुनाता है और हम उसे किसी प्रकार का प्रश्न पुछकर जवाब प्राप्त कर सकते है।
शामरी बिर-जो कोइ भी कार्य सिद्ध करवा देता है।
नारसिंग बिर-जो हम पर किये जाने वाले तंत्र प्रयोग को वापिस भेजता है।
नारसिंग बिर-जो हम पर किये जाने वाले तंत्र प्रयोग को वापिस भेजता है।
दादू बिर-जो शत्रुओं का नाश करता है।
मोहन्या बिर-जो हमारे लिए वशीकरण,आकर्षण,सम्मोहन और मोहन करवाने के काम करवा देता है।
जादू बिर-जो हमारे हाथो होने वाले किसी भी प्रकार के जादू को सत्य कराता है।
मायावी बिर-जो माया डालकर कुछ समय के लिये देखने वालो को रस्सी का सर्प भी बनाकर दिखाता है मतलब माया से असत्य को सत्य दिखाता है।
गगना बिर-रक्षात्मक कार्यो मे हमारा काम करता है।
सगना बिर-हमे धोका खाने से बचाता है।
सगना बिर-हमे धोका खाने से बचाता है।
गरुड बिर-सर्पो से हमारा रक्षा करता है और विष का नाश करता है।
धनात्री बिर-जो हमे जमीन मे गडे हुये वस्तुओ को बाहर निकालने मे सहायता करता है और जमीन के निचे जो कोइ भी वस्तु हो उसकि सही जानकारी देता है और हमारा किस्मत अच्छा हो तो वह उसे बाहर निकालकर देता है।
अष्टभैरव बिर-अब अष्टभैरव के बारे मे क्या बताऊ हनुमानजी के तरह ये भी सभी काम करवा देते है।इनके लिये तो शत्रु का नाश करना भी मतलब आसान सा कार्य है।अष्टभैरव मे आठ भैरव होते है जो अलग अलग प्रकार के कार्यो मे माहिर होते है।
कलवा बिर-यह तो एक प्रसिद्ध बिर है जो प्रत्येक कार्य आसानी से कर देता है।
कालु बिर-यह बिर रात के अंधेरे मे ही कार्य करता है और यह बिर शत्रुओं को पिडा देने हेतु और कर्ज मे दिया हुआ धन निकालने मे माहिर है।
दृष्टा बिर-इसके माध्यम से हमे दुर के चिजो को देखने मे सहायता होता है।जैसे मुम्बई मे बैठा व्यक्ति दिल्ली मे बैठे व्यक्ति का हलचल देख सकता है।कौन क्या कर रहा है?"ये सब काम इसी बिर से होते है।
अभी मैने आपको यहा आज 21 बिरो के बारे मे बताया और 36 योगिनीया दिये हुए सभी कामो मे बिरो के साथ कार्य करती है,योगिनीयो के लिए मंत्र जाप करने कि कोइ जरुरत नही है।बिरो के मंत्रो से ही योगिनीया साधक के काम करवा देती है।
बिर कंगण निर्माण विधी-
इसके पहले भी यह बता चुका हू,बिर कंगण का निर्माण एक कठिन कार्य है परंतु सामान्य बिर कंगण को बनाना थोडा आसान है।इसमे अष्टधातु का प्रयोग होता है,जिनके मात्रा और मुल्य के बारे मे मै आपको अवगत करवा देता हू-
सोना- सव्वा ग्राम जिसका मुल्य 3375 रुपये है।
चाँदी-सव्वा पाच ग्राम जिसका मुल्य 250 रुपये है।
तांबा-200 रुपये का लगेगा।
रांगा-250 रुपये का लगता है।
जस्ता-300 रुपये लगता है।
सीसा-350 रुपये का लगता है।
लोहा-5 रुपये का लगता है।
पारा(रस)-600 रुपये का लगता है।
चाँदी-सव्वा पाच ग्राम जिसका मुल्य 250 रुपये है।
तांबा-200 रुपये का लगेगा।
रांगा-250 रुपये का लगता है।
जस्ता-300 रुपये लगता है।
सीसा-350 रुपये का लगता है।
लोहा-5 रुपये का लगता है।
पारा(रस)-600 रुपये का लगता है।
कुल अष्टधातु का खर्च 5330/- रुपये होता है।जिसमे कंगण निर्माण का खर्च 500 रुपये लगेगा क्युके ये कंगण बनाने का कार्य अधिक परिश्रम युक्त है।जिसमे सर्वप्रथम अष्टधातु को अग्नि मे डालकर उसका पानी बनाया जाता है।उसके बाद एक गोल रिंग बनाना पड़ता है और उस रिंग के उपर बिरो के मुर्तियो को बिठाया जाता है।कंगण बानते समय कंगण बनाने वाला कारीगर कपडे नही पहन सकता है,उसे नग्न अवस्था मे बैठकर ही कंगण का निर्माण करना पडता है और एक बार वह निर्माण कार्य शुरु कर देता है तो उसको बीच मे छोडकर उठ नही सकता है,अब सबसे महत्वपूर्ण बात कंगण को जमीन पर नही रख सकते है जब तक बिर कंगण निर्माण पुर्ण नही होता है।
इसका न्योच्छावर राशी 5830 रुपये है,50 रुपये बैंक वाले ट्रान्सफर का चार्जेस लेते है,200 रुपये कोरियर के चार्जेस लगते है।कुल मिलाकर कर सामन्य आकार का बिर कंगण (21 बिर 36 जोगिनी) 6080/-रुपये मे आप प्राप्त कर सकते है।
बिर कंगण प्राप्त करने हेतु ई-मेल के माध्यम से सम्पर्क करे- "amannikhil011@gmail.com" और बिर कंगण प्राप्त करे।
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